मै परम् ब्रह्म सदाशिव हूँ, और आपकी उत्पत्ति श्रृष्टि के संचालन हेतु की गई है इस लिए आप श्रृष्टि के पालनहर्ता बनेंगें और आज से आपका नाम श्री हरि विष्णु होगा। फिर परम् ब्रह्म सदाशिव जगत पिता से कहते हैं कि आपकि उत्पत्ति श्रृष्टि के सृजन हेतु की गई है इसलिए आपका नाम जगत पिता ब्रह्म होगा।
श्रृष्टि के रचैयता
महाग्रंथ
भाग - 1
श्रृष्टि भले ही एक छोटा सा शब्द है, परन्तु इसका अर्थ इतना बड़ा है कि हम अपनी कल्पनाओं को भी पार कर जाये तब भी श्रृष्टि को नहीं समझ सकते। वास्तव में श्रृष्टि एक शून्य है, जो है भी और नहीं भी यह बात श्रृष्टि की नहीं है और ना ही शून्य की, बात तब की है जब श्रृष्टि ही अस्तित्व में नहीं थी और ना ही शून्य का कोई अस्तित्व था। मै बात उस समय की कर रहा हूँ जब ना तो समय था और ना ही अन्धकार, था भी तो एक प्रकाश पुंज जो उस समय कुछ भी न होने के शब्द को नकारता है। वास्तव में अस्तित्व के शून्य होने के बावजूद एक प्रकाश पुंज अस्तित्व में था जिसका न आदि था और न ही अन्त था। यह प्रकाश पुंज इतनी ऊर्जा समेटे हुए थी की उसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है। जिस समय ध्वनि भी अस्तित्व में नहीं थी। उस समय यह प्रकाश पुंज ॐ.... (ओम) के नाद से गूँज रहा था, आज भी कोई ऐसा देव, दानव, मानव नहीं है जो यह जानता हो कि यह प्रकाश पुंज यहाँ कब से था, शिवाय उसके जो खुद यह प्रकाश पुंज है जो खुद शिवाय है। जिसे हम देवों के देव महादेव के नाम से जानते हैं जो देवों से भी परे हैं।
यह बात उस ॐ ( ओमकार ) कि है जो अस्तित्व के न होने के बावजूद भी अस्तित्व में था जो अपनी ही ऊर्जा को नियंत्रित करने के लिए न जाने कितने असंख्य कालों से ध्यान मग्न था। इस प्रकाश पुंज ने खुद को अस्तित्व में लाने के लिए अस्तित्व एवं काल का निर्माण किया। अनेकों असंख्य काल बीत जाने के बाद इस प्रकाश पुंज ने खुद को एक आकार (मानव शरीर के रूप का आकार) में परिवर्तित कर लिया तब जन्म हुआ आकार का परन्तु इस आकार की ऊर्जा अभी भी नियंत्रित नहीं थी। यह आकार अभी भी प्रचंड ऊर्जा एवं प्रचण्ड अग्नि से भरा हुआ था। जिससे अग्नि अस्तित्व में आया। तब इस आकार ने एक विशाल काय ठोस पिण्ड की रचना की जो ऊर्जा को सोख सके। परन्तु इस प्रचण्ड अग्नि का आकार इतना बड़ा था कि यह पिण्ड के अन्दर वक्राकार रूप में ही समा सका जिसके कारण पिण्ड का एक भाग इस मानव रूपी प्रचण्ड अग्नि के नाभि में जा फसा यह प्रचण्ड अग्नि अपनी ऊर्जा को नियंत्रण में लाने के लिए इस पिण्ड में असंख्य वर्षों से ध्यान मग्न रहा।
अनगिनत काल बीतते गए जिससे इस पिण्ड के अन्दर असंख्य ऊर्जा भर चुकी थी और धीरे-धीरे यह पिण्ड प्रचण्ड अग्नि के गोले के रूप में परिवर्तित हो गया। परन्तु यह पिण्ड अब और ऊर्जा नहीं सोख सकता था, जब यह पिण्ड इस प्रचण्ड अग्नि की ऊर्जा के चरम पर पहुँचा। तब इस पिण्ड में इतना बड़ा धमाका हुआ जिसकी कल्पना भी करना असम्भव है। तब इस पिण्ड के असंख्य प्रचण्ड अग्नि के टुकड़े पूरी श्रृष्टि में फैल गए। जो कई वर्षों के बाद सूर्य में परिवर्तित हो गए। जिससे श्रृष्टि और प्रकाश अस्तित्व में आया। परन्तु इस प्रचण्ड अग्नि की प्रचण्ड ऊर्जा इस पिण्ड के एक छोटे से कड़ पर बरसी जो इस प्रचण्ड अग्नि के नाभि में जा फसी थी। नाभि जो जन्म का केंद्र है इसने जन्म दिया एक अजर-अमर सूर्य को जो बाद में चलकर पृथ्वी का सूर्य बना यह सूर्य श्रृष्टि का केंद्र भी है, देखा जाए तो सूर्य का जन्म शिव से हुआ है जिसके कारण सूर्य अमर है यह कभी नष्ट नहीं होगा। परन्तु अभी भी इस प्रचण्ड अग्नि की ऊर्जा शांत नहीं थी। श्रृष्टि के निर्माण के पश्चात ये सभी सूर्य नियंत्रण में नहीं थे। तब इस श्रृष्टि को नियंत्रण में रखने के लिए एक नियंत्रक की आवश्यकता थी। तब इस प्रचण्ड अग्नि ने अपने अन्दर के पिता को श्रृष्टि के नियंत्रण के लिए मानव रूपी शरीर में अवतरित किया। जिन्हे हम परम् पिता श्री हरि विष्णु के रूप में जानते हैं।
परम् पिता के अवतरण के पश्चात यह प्रचण्ड अग्नि पुनः खुद को प्रकाश पुंज में परिवर्तित कर ध्यान में चला गया। परन्तु श्रृष्टि अभी भी नियंत्रण में नहीं थी। क्योंकि परम् पिता के अवतरण के पश्चात परम् पिता निद्रा में ही रहे। क्योंकि परम् पिता भी अपने अन्दर असंख्य ऊर्जा समेटे हुए थे। जिससे परम् पिता ने असंख्य कालों तक निद्रा अवस्था में ही रहकर अपनी समस्त शक्तियों को एकत्रित कर अपने एक अंग का निर्माण किया जो सुदर्शन चक्र के रूप में था। जो स्वयं शक्ति हैं। सुदर्शन चक्र का निर्माण परम् पिता ने अपने अन्दर स्थित शक्ति की ऊर्जा को एकत्रित कर किया था। इसी तरह कई काल बितते गए परम् पिता ने निद्रा अवस्था में ही आकाश गंगा का निर्माण किया। तब कुछ कालों के पश्चात परम् पिता के नभ से श्रृष्टि के सृजन हेतु जगत पिता का अवतरण हुआ।
कई असंख्य कालों के बीत जाने के बाद परम् पिता एवं जगत पिता दोनों ही अपनी निद्रा से बाहर आए। लेकिन उन्हे यह नहीं पता था कि उनकी उत्पत्ति कैसे और क्यूँ हुई। जगत पिता ने परम् पिता की ओर देखा, परम् पिता के चार हाँथ थे। जिसमें परम् पिता ने एक हाँथ में सुदर्शन चक्र, दूसरे हाँथ में कमल का फूल, तीसरे हाँथ में शंख और चौथे हाँथ में गदा धारण किए हुए थे। तब परम् पिता ने जगत पिता की ओर देखा जगत पिता कमल के ऊपर विराजमान थे जिसका आधार परम् पिता की नभ थी। परम् पिता ने देखा कि जगत पिता के चार सिर व चार हाँथ है। जगत पिता के एक हाँथ में माला, दूसरे हाँथ में कमंडल तथा तीसरा और चौथा हाँथ योग मुद्रा में स्थित था। तब जगत पिता ने परम् पिता से कहा की हम कौन हैं क्या आपकि उत्पत्ति मुझसे हुई है। ये सुन कर परम् पिता मुस्कुरा के बोले की आपकी उत्पत्ति मुझसे हुई है। तब जगत पिता ने परम् पिता से कहा तो आपकि उत्पत्ति कैसे हुई। परम् पिता बस मुस्कुराते रहे और कोई उत्तर नहीं दिया। तब जगत पिता ने परम् पिता से एक बार फिर कहा की आपकि उत्पत्ति मुझसे हुई है इस कारण मै आप से पद में बड़ा हूँ। ये सब सुन कर परम् पिता बस मुस्कुराते रहे और कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। तब दोनों की नजर एक प्रकाश पुंज पर गई जो प्रचण्ड अग्नि से घिरा हुआ था और ॐ...... के नाद से गूँज रहा था। तब उस प्रकाश पुंज से आवाज आई कि आप दोनों की उत्पत्ति हमसे हुई है। यह आवाज शिव और शक्ति की थी। उन्होंने कहा कि हमने आप दोनों कि उत्पत्ति श्रृष्टि के संचालन एवं श्रृष्टि के सृजन हेतु की है। तब परम् पिता और जगत पिता ने उस प्रकाश पुंज को प्रणाम किया और परम् पिता ने पूछा की आप कौन हैं और हमारी उत्पत्ति किस उद्देश्य हेतु की गई है। तब उस प्रकाश पुंज ने बताया मै परम् ब्रह्म सदाशिव हूँ, और आपकी उत्पत्ति श्रृष्टि के संचालन हेतु की गई है इस लिए आप श्रृष्टि के पालनहर्ता बनेंगें और आज से आपका नाम श्री हरि विष्णु होगा। फिर परम् ब्रह्म सदाशिव जगत पिता से कहते हैं कि आपकि उत्पत्ति श्रृष्टि के सृजन हेतु की गई है इसलिए आपका नाम जगत पिता ब्रह्म होगा। तब जगत पिता ब्रह्म ने परम् ब्रह्म सदाशिव से पूछा की मुझमें और श्री हरि विष्णु में से कौन बड़ा है, जगत पिता ब्रह्म कहते है कि मैं जिसका सृजन करूँगा श्री हरि विष्णु उसका पालन करेंगे, इस कथन के अनुसार बड़ा तो मैं ही हुआ। तब परम् ब्रह्म सदाशिव ने जगत पिता ब्रह्म से कहा की इसका पता तभी लगाया जा सकता है। जब आप मेरी इस प्रकाश पुंज में प्रवेश करेंगे और आप दोनों में से जो भी इस प्रकाश पुंज के अन्तिम छोर को सर्व प्रथम प्राप्त करेगा वही सबसे बड़ा होगा।
यह बात उस ॐ ( ओमकार ) कि है जो अस्तित्व के न होने के बावजूद भी अस्तित्व में था जो अपनी ही ऊर्जा को नियंत्रित करने के लिए न जाने कितने असंख्य कालों से ध्यान मग्न था। इस प्रकाश पुंज ने खुद को अस्तित्व में लाने के लिए अस्तित्व एवं काल का निर्माण किया। अनेकों असंख्य काल बीत जाने के बाद इस प्रकाश पुंज ने खुद को एक आकार (मानव शरीर के रूप का आकार) में परिवर्तित कर लिया तब जन्म हुआ आकार का परन्तु इस आकार की ऊर्जा अभी भी नियंत्रित नहीं थी। यह आकार अभी भी प्रचंड ऊर्जा एवं प्रचण्ड अग्नि से भरा हुआ था। जिससे अग्नि अस्तित्व में आया। तब इस आकार ने एक विशाल काय ठोस पिण्ड की रचना की जो ऊर्जा को सोख सके। परन्तु इस प्रचण्ड अग्नि का आकार इतना बड़ा था कि यह पिण्ड के अन्दर वक्राकार रूप में ही समा सका जिसके कारण पिण्ड का एक भाग इस मानव रूपी प्रचण्ड अग्नि के नाभि में जा फसा यह प्रचण्ड अग्नि अपनी ऊर्जा को नियंत्रण में लाने के लिए इस पिण्ड में असंख्य वर्षों से ध्यान मग्न रहा।
अनगिनत काल बीतते गए जिससे इस पिण्ड के अन्दर असंख्य ऊर्जा भर चुकी थी और धीरे-धीरे यह पिण्ड प्रचण्ड अग्नि के गोले के रूप में परिवर्तित हो गया। परन्तु यह पिण्ड अब और ऊर्जा नहीं सोख सकता था, जब यह पिण्ड इस प्रचण्ड अग्नि की ऊर्जा के चरम पर पहुँचा। तब इस पिण्ड में इतना बड़ा धमाका हुआ जिसकी कल्पना भी करना असम्भव है। तब इस पिण्ड के असंख्य प्रचण्ड अग्नि के टुकड़े पूरी श्रृष्टि में फैल गए। जो कई वर्षों के बाद सूर्य में परिवर्तित हो गए। जिससे श्रृष्टि और प्रकाश अस्तित्व में आया। परन्तु इस प्रचण्ड अग्नि की प्रचण्ड ऊर्जा इस पिण्ड के एक छोटे से कड़ पर बरसी जो इस प्रचण्ड अग्नि के नाभि में जा फसी थी। नाभि जो जन्म का केंद्र है इसने जन्म दिया एक अजर-अमर सूर्य को जो बाद में चलकर पृथ्वी का सूर्य बना यह सूर्य श्रृष्टि का केंद्र भी है, देखा जाए तो सूर्य का जन्म शिव से हुआ है जिसके कारण सूर्य अमर है यह कभी नष्ट नहीं होगा। परन्तु अभी भी इस प्रचण्ड अग्नि की ऊर्जा शांत नहीं थी। श्रृष्टि के निर्माण के पश्चात ये सभी सूर्य नियंत्रण में नहीं थे। तब इस श्रृष्टि को नियंत्रण में रखने के लिए एक नियंत्रक की आवश्यकता थी। तब इस प्रचण्ड अग्नि ने अपने अन्दर के पिता को श्रृष्टि के नियंत्रण के लिए मानव रूपी शरीर में अवतरित किया। जिन्हे हम परम् पिता श्री हरि विष्णु के रूप में जानते हैं।
परम् पिता के अवतरण के पश्चात यह प्रचण्ड अग्नि पुनः खुद को प्रकाश पुंज में परिवर्तित कर ध्यान में चला गया। परन्तु श्रृष्टि अभी भी नियंत्रण में नहीं थी। क्योंकि परम् पिता के अवतरण के पश्चात परम् पिता निद्रा में ही रहे। क्योंकि परम् पिता भी अपने अन्दर असंख्य ऊर्जा समेटे हुए थे। जिससे परम् पिता ने असंख्य कालों तक निद्रा अवस्था में ही रहकर अपनी समस्त शक्तियों को एकत्रित कर अपने एक अंग का निर्माण किया जो सुदर्शन चक्र के रूप में था। जो स्वयं शक्ति हैं। सुदर्शन चक्र का निर्माण परम् पिता ने अपने अन्दर स्थित शक्ति की ऊर्जा को एकत्रित कर किया था। इसी तरह कई काल बितते गए परम् पिता ने निद्रा अवस्था में ही आकाश गंगा का निर्माण किया। तब कुछ कालों के पश्चात परम् पिता के नभ से श्रृष्टि के सृजन हेतु जगत पिता का अवतरण हुआ।
कई असंख्य कालों के बीत जाने के बाद परम् पिता एवं जगत पिता दोनों ही अपनी निद्रा से बाहर आए। लेकिन उन्हे यह नहीं पता था कि उनकी उत्पत्ति कैसे और क्यूँ हुई। जगत पिता ने परम् पिता की ओर देखा, परम् पिता के चार हाँथ थे। जिसमें परम् पिता ने एक हाँथ में सुदर्शन चक्र, दूसरे हाँथ में कमल का फूल, तीसरे हाँथ में शंख और चौथे हाँथ में गदा धारण किए हुए थे। तब परम् पिता ने जगत पिता की ओर देखा जगत पिता कमल के ऊपर विराजमान थे जिसका आधार परम् पिता की नभ थी। परम् पिता ने देखा कि जगत पिता के चार सिर व चार हाँथ है। जगत पिता के एक हाँथ में माला, दूसरे हाँथ में कमंडल तथा तीसरा और चौथा हाँथ योग मुद्रा में स्थित था। तब जगत पिता ने परम् पिता से कहा की हम कौन हैं क्या आपकि उत्पत्ति मुझसे हुई है। ये सुन कर परम् पिता मुस्कुरा के बोले की आपकी उत्पत्ति मुझसे हुई है। तब जगत पिता ने परम् पिता से कहा तो आपकि उत्पत्ति कैसे हुई। परम् पिता बस मुस्कुराते रहे और कोई उत्तर नहीं दिया। तब जगत पिता ने परम् पिता से एक बार फिर कहा की आपकि उत्पत्ति मुझसे हुई है इस कारण मै आप से पद में बड़ा हूँ। ये सब सुन कर परम् पिता बस मुस्कुराते रहे और कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। तब दोनों की नजर एक प्रकाश पुंज पर गई जो प्रचण्ड अग्नि से घिरा हुआ था और ॐ...... के नाद से गूँज रहा था। तब उस प्रकाश पुंज से आवाज आई कि आप दोनों की उत्पत्ति हमसे हुई है। यह आवाज शिव और शक्ति की थी। उन्होंने कहा कि हमने आप दोनों कि उत्पत्ति श्रृष्टि के संचालन एवं श्रृष्टि के सृजन हेतु की है। तब परम् पिता और जगत पिता ने उस प्रकाश पुंज को प्रणाम किया और परम् पिता ने पूछा की आप कौन हैं और हमारी उत्पत्ति किस उद्देश्य हेतु की गई है। तब उस प्रकाश पुंज ने बताया मै परम् ब्रह्म सदाशिव हूँ, और आपकी उत्पत्ति श्रृष्टि के संचालन हेतु की गई है इस लिए आप श्रृष्टि के पालनहर्ता बनेंगें और आज से आपका नाम श्री हरि विष्णु होगा। फिर परम् ब्रह्म सदाशिव जगत पिता से कहते हैं कि आपकि उत्पत्ति श्रृष्टि के सृजन हेतु की गई है इसलिए आपका नाम जगत पिता ब्रह्म होगा। तब जगत पिता ब्रह्म ने परम् ब्रह्म सदाशिव से पूछा की मुझमें और श्री हरि विष्णु में से कौन बड़ा है, जगत पिता ब्रह्म कहते है कि मैं जिसका सृजन करूँगा श्री हरि विष्णु उसका पालन करेंगे, इस कथन के अनुसार बड़ा तो मैं ही हुआ। तब परम् ब्रह्म सदाशिव ने जगत पिता ब्रह्म से कहा की इसका पता तभी लगाया जा सकता है। जब आप मेरी इस प्रकाश पुंज में प्रवेश करेंगे और आप दोनों में से जो भी इस प्रकाश पुंज के अन्तिम छोर को सर्व प्रथम प्राप्त करेगा वही सबसे बड़ा होगा।